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खुद ही बनो अपने खुदा

(Last Updated On: July 12, 2019)
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“मैं बहुत तरक्की कर सकता हूँ लेकिन मेरे स्टाफ के वजह से हमेशा पीछे रह जाता हूँ, अगर मुझे इनसे अच्छे सहयोगी मिले तो ही मेरा काम अच्छे तरीके से पूरा कर पाउँगा.” – मैनेजर

“मैं कितनी भी पढाई करूँ, फिर भी exam में मेरे साथ बुरा ही होता हैं, कभी कभी लगता हैं कि नियति मेरे साथ खिलवाड़ कर रही हैं” – बार बार असफल होनेवाला छात्र

“मैं भी नहीं चाहती कि अपने पति से मेरा बार बार झगडा हो लेकिन क्या करूँ हालत ही ऐसे होते हैं कि मैं ऐसा करने पर मजबूर हो जाती हूँ” –  एक निराश पत्नी

“शायद मेरे नसीब में यह लिखा न हो, नहीं तो इतने प्रयास के बाद भी में असफल क्यों होता? शायद यह बिज़नेस मेरे लिए बना ही नहीं” – बिज़नेसमन

 

 

उदाहरण के तौर पर यहाँ पर चार लोग हैं लेकिन हम सबमेंसे बहुत सारे लोग इसीप्रकार के होते हैं. यहाँ पर इन लोगोंको समस्या होना यह बात सामान्य हैं. समस्या किसे नहीं होती? लेकिन समस्या में ही रहना यह बात अच्छी नहीं हैं. हम सब लोग समस्याओं से पीड़ित होते हैं और हमेशा उस समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करते हैं. हर कोई चाहता हैं कि उसकी समस्या का समाधान उसे जल्द ही मिल जाये. अगर आप ऊपर दिए गए चार  लोगों से थोड़ी बहुत भी समानता रखते हो तो अगला विधान आपके लिए महत्वपूर्ण हैं. ऊपर दिए गए लोग समस्या ओं के कारण पीड़ित नहीं हैं, वो पीड़ित इसलिए हैं कि उन्हें पता ही नहीं हैं कि उस समस्या के निर्माणकर्ता वे खुद हैं.

पीड़ित होने से बड़ी समस्या ‘हम पीड़ित हैं’ यह न समझना हैं

 

हम बहुत बरसोंसे ऐसा सोचते आ रहे हैं कि ये मेरे साथही होता रहता हैं, नियति मुझ पर मेहरबान नहीं हैं, भगवान ही नहीं चाहते हैं कि मैं यह करूँ. लेकिन हम कभी भी इस वास्तविकता को स्वीकार नहीं करते कि हमारे साथ जो कुछ भी होता हैं उसमें सबसे बड़ा हाथ हमारा ही होता हैं. हम यह मानते ही नहीं कि मेरे साथ होनेवाले हर एक घटना का केंद्रबिंदु मैं खुद ही हूँ. हमें कभी यह पता ही नहीं चलता कि हमारे अस्तित्व की प्रतिक्रिया ही हमारे साथ होनेवाली हर एक घटना में समाई हुई होती हैं.

उपर दिए उदाहरण में मैनेजर की समस्या हैं कि उसके सहयोगी अच्छे नहीं हैं, उनका प्रदर्शन ठीक नहीं हैं लेकिन वह कभी भी नहीं सोचता कि इस समस्या के निर्माण में उसका बहुत बड़ा योगदान हैं. मैनेजर का काम हैं कि वह अपने सहयोगी,अपने संसाधनों को अच्छी तरह से मैनेज करे- अपने सहयोगी से  सर्वोत्तम प्रदर्शन करवा ले, अपने संसाधनों को परिपूर्ण इस्तेमाल करे. अगर उनकी फर्म अपने प्रदर्शन में पीछे हट रही हैं, अपने लक्ष्यों में असफ़ल हो रही हैं तो इसमें सबसे बड़ा कारण यह हैं कि मैनेजर वहां पर असफल हो रहे हैं नाकि उनके संसाधन, उनके सहयोगी.

अपने हालत को दोष देनेवाली पत्नी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वो जिस हालात को जिम्मेदार ठहरा रही हैं वह उसीके द्वारा निर्मित हैं. वह जानती हैं कि उसे अपने पति से झगडा नहीं करना हैं, वह यह भी मानती हैं कि हालात उसे ऐसा करने पर मजबूर करते हैं लेकिन वह इस बात से अज्ञात हैं कि वह परिस्थिति, वह हालात जो उस संघर्ष को प्रेरित करते हैं वह उसी के व्यक्तित्व के परिस्थितियों साथ हुए क्रिया का परिणाम हैं.

हम हमारे समस्या भरे जीवन में अपने हालात को, अपने सहयोगियों को, अपने पत्नी को, अपने पिता को दोष देते है और यह बहुत आसान हैं.मैं मेरा प्रोजेक्ट पूरा कर न पाया- ‘मेरे सहयोगीने अच्छा साथ नहीं दिया’-यह कहना कितना आसान हैं. मनुष्य का स्वभाव ही हैं कि वह ‘आसानी’ को अपना ले लेकिन उसी असफल प्रोजेक्ट में मेरे सहयोगी का उचित योगदान लेने में मैं असफल हुआ यह कहना कितना कठिन हैं. किसी के लिए हम कह भी देंगे लेकिन उसे मानना कितना कठिन है!

दोनों भी जगह पर आपका प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ  हैं-‘आप अपने कार्य में असफल हैं फिर जिम्मेदार सहयोगी को ठहराये या अपने आप को’ इसमें क्या भेद हैं? यहाँ पर अगर केवल परिणाम की बात की जाए तो भेद कुछ भी नहीं हैं, लेकिन हम इन्सान हैं- हम कोई मशीन नहीं हैं जो केवल परिणामों पर जोर देती हो. अन्य प्राणी और मशीनों से बेहतर हम इसलिए हैं कि हम में विचार करने की शक्ति हैं. और यही विचार प्रक्रिया हमें परिस्थितियों में बदलाव लाने को प्रेरित करती हैं, जीवन में निर्माण हुए समस्या को सुलझाने में मदद करती हैं. यह प्रेरणा आपको तब ही मिल सकती हैं जब आप समस्या को उचित रूप में देखे, समस्या क्या हैं यह जान ले.

समस्या के अस्तित्व को मान लेना ही उसे सुलझाने का पहला सोपान हैं

 

मानो आपके असफलता का कारण अगर आप अपने सहयोगी को ही मानते रहे तो आपको अपने खुद के सामर्थ्य से प्रोजेक्ट पूरा करने की प्रेरणा नहीं मिलेगी. आपको इंतजार रहेगा कि कब आपके सहयोगी बदल जाये और आप अपने नए सहयोगी के साथ काम को अंजाम दे. लेकिन आपके असफलता के लिए आप खुद ही जिम्मेदार हो तो? आप कितने भी सहयोगी बदल कर देख लो, आपको परिणाम वैसा ही मिलेगा. और अगर मान भी ले कि आपका सहयोगी उस काम के लिए पात्र नहीं हैं लेकिन क्या आनेवाला दूसरा आदमी आपको जैसा चाहिए वैसा रहेगा? कब तक उचित व्यक्ति के तलाश में हमें रहना पड़ेगा? इसी बात के दुसरे पक्ष में अगर हम मान लेते हैं कि मेरी असफलता का सबसा बड़ा कारण मैं खुद हूँ तो हमारे विचार प्रक्रिया में एक नया दृष्टिकोण निर्माण होगा जो हमें हमेशा अपने लक्ष्य की ओर प्रेरित करता रहेगा.मुझे जब पता होगा कि मेरी ही कुछ कमजोरी होगी जो मुझे सफल होनेसे रोक रही हैं तो मैं उसे ढूंढ पाउँगा. मैं वो हर एक प्रयास करूँगा जो मुझे अपने आप में सुधार करने हेतु करने चाहिए. समस्या के अस्तित्व को मान लेना ही उसे सुलझाने का पहला सोपान हैं.

हमें अपने जीवन में हो रहे हर एक घटना के लिए, हर एक परिणाम के लिए  खुद को जिम्मेदार समझना चाहिए, चाहे वो अच्छा हो या बुरा . आदमी का स्वभाव बहुत ही चमत्कारिक होता हैं. अगर आपके घर में कोई कीमती कांच का सामान हैं और कोई आपसे उसके बारे में पूछता हैं तो हम बड़े अभिमान से कहते हैं – मैंने यह मुंबई से ख़रीदा हैं. और अगर वही सामान हमारे हाथ गिरकर टूट जाता हैं तो हम कहते हैं कि वह सामान गलतीसे नीचे गिर गया और टूट गया. हम यह क्यों नहीं स्वीकार करते कि यह मैंने तोडा हैं! क्योंकि यह हमारा स्वभाव हैं. हम उन चीजों के लिए पूरी जिम्मेदारी लेते हैं जो आपको आनंद दे. और जहाँ पर आनंद के जगह पर दुःख हो, अपमान हो, उसे स्वीकृत करने में हम हिचकिचाते हैं. ख़ुशी निर्माण करनेवाले चीजों का श्रेय लेना अच्छा हैं लेकिन साथ ही हमसे ही निर्मित दुःख, अपमान भरे परिणामों के दोष किसी दूसरे आदमी या हालात पर लगाना बहुत हानिकारक हैं.

समस्या समाधान के लिए बाहर नहीं अपने आप में ढूंढना हैं.

 

आपके हर एक समस्या का समाधान आपके पास होगा यदि आप हर एक परिणाम के लिए अपने आपको जिम्मेदार समझते हो. आप हर एक उस हालात को बदल सकते हो जो आपके में परेशानियां निर्माण करती हैं लेकिन पहले आपको यह मानना होगा आप ही उन हालातों के जनक हो. आप उसी चीज़ को बदल सकते हो जो आपके नियंत्रण मे हैं और जिम्मेदारी स्वीकृत करके आप उस हर एक चीज़ को अपने नियंत्रण में लेते हो. जब आप अपने परिस्थितियों को नियंत्रण में ले लेते हो तो अपने आप को सामर्थवान पाते हो. सामर्थवान, सर्वशक्तिमान को क्या संभव नहीं हैं?

अपने समस्याओं का, बिगड़े हालातोका, अनियंत्रित परिस्थितियों का हल बाहर ढूँढना छोड़कर आपको आपके अन्दर झाकना होगा- आपको सारे सवालोंके जवाब मिलेंगे. आपके लिए आपसे बेहतर अच्छा भविष्य और कोई नहीं बना सकता. आपके जीवन के हर एक समस्या को आपसे बेहतर और कोई नहीं सुलझा सकता.

इसीलिए जिम्मेदार बनो ! हालातोंको अपने नियत्रंण में लो !! सामर्थवान बनो!!! और जो चाहे वैसा परिणाम आपने जीवन में पाओ.

क्या आपको लगता हैं कि अपने हालातो की जिम्मेदारी स्वीकृत करने पर सभी समस्याओं को हल किया जा सकता हैं? अगर आपको ऐसा नहीं लगता हैं तो वो क्या बात हो सकती हैं जो ऐसा होने से रोकती हैं? हमें जरुर बताये और साथ ही आपको यह आर्टिकल कैसा लगा यह भी आप कमेंट बॉक्स में लिखे .

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Published by
Mr. Sagar B. Tupe Patil

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